शेयर बाजार में निवेश करते समय हमें कुछ महत्वपूर्ण शब्दों की जानकारी का होना आवश्यक हैं इसलिए हम इस आर्टिकल “Face Value of Share in Hindi” में फेस वैल्यू (Face Value) के बारे में विस्तार से चर्चा करने वाले हैं, जिसे अक्सर नए निवेशक द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है। साथ ही जानेंगे की किसी शेयर के डिविडेंड (Dividend) और बोनस शेयर (Bonus Share) में फेस वैल्यू की क्या भूमिका होती है और ये कैसे निवेशकों के लिए कंपनी के वित्तीय ढांचे को समझने में उपयोगी साबित होती है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि फेस वैल्यू क्या होती है, मार्केट वैल्यू (Market Value) से इसका क्या अंतर है और निवेशकों के लिए इसका क्या महत्व है।
फेस वैल्यू (Face Value) किसी शेयर का वह मूल अंकित मूल्य है जिसे कंपनी द्वारा शेयर जारी करते समय तय किया जाता है। यह कंपनी की प्रारंभिक पूंजी संरचना को दर्शाता है और कंपनी की बैलेंस शीट में इसे दर्ज किया जाता है। हालांकि फेस वैल्यू शेयर की ट्रेडिंग कीमत (मार्केट प्राइस) को सीधे प्रभावित नहीं करती, लेकिन इसका उपयोग कई वित्तीय गणनाओं और कॉर्पोरेट कार्यों में किया जाता है। फेस वैल्यू, जिसे Nominal Value या Par Value भी कहा जाता है
उदाहरण के लिए: यदि किसी कंपनी ने 10 रुपये की फेस वैल्यू पर 1 लाख शेयर जारी किए हैं, तो कंपनी का शेयर कैपिटल 10 लाख रुपये (10 रुपये × 1 लाख शेयर) होगा।
फेस वैल्यू निर्धारित करने के मुख्य कारक-
Face Value एक स्थिर राशि होती है और यह आमतौर पर शेयर सर्टिफिकेट पर अंकित होता है। फेस वैल्यू का निर्धारण कंपनी के कॉर्पोरेट संरचना, पूंजी की आवश्यकता, और भविष्य की योजनाओं के आधार पर किया जाता है।
कंपनी का प्रारंभिक पूंजी संरचना : कंपनी की प्रारंभिक पूंजी संरचना और जरूरतों के आधार पर, कंपनी अपनी फेस वैल्यू तय करती है। यदि कंपनी को अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है, तो वह कम फेस वैल्यू पर अधिक शेयर जारी कर सकती है।
कंपनी के व्यवसाय मॉडल और आकार : कंपनी का आकार और उसका व्यवसाय मॉडल भी फेस वैल्यू के निर्धारण में भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, एक बड़ी और स्थापित कंपनी अपनी फेस वैल्यू को अधिक रख सकती है, जबकि एक नई कंपनी इसे कम रख सकती है ताकि अधिक निवेशकों को आकर्षित किया जा सके।
मार्केट कंडीशन और रणनीतियाँ : बाजार की स्थिति और कंपनी की रणनीतियाँ भी फेस वैल्यू तय करने में मदद करती हैं। कभी-कभी कंपनी शेयरों की फेस वैल्यू घटाकर निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिश करती है, जैसे कि शेयर स्प्लिट (Share Split) के माध्यम से।
कानूनी और वित्तीय मानदंड : कई देशों में, कंपनियों को कानून और वित्तीय मानदंडों के तहत फेस वैल्यू तय करने के लिए नियमों का पालन करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, कुछ देशों में कंपनी को शेयरों की न्यूनतम फेस वैल्यू रखने की आवश्यकता हो सकती है।
निवेशकों को आकर्षित करने के लिए रणनीति : यदि कंपनी नए निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है, तो वह अपनी फेस वैल्यू कम रख सकती है, जिससे शेयर सस्ते प्रतीत हों। इसके अलावा, शेयर स्प्लिट या बोनस शेयर जैसे उपायों से भी फेस वैल्यू में बदलाव किया जा सकता है।
फेस वैल्यू निर्धारण का एक उदाहरण : मान लीजिए एक कंपनी ने 1,00,000 शेयर जारी किए और प्रत्येक शेयर की फेस वैल्यू ₹10 रखी। इस तरह कंपनी की कुल शेयर पूंजी ₹10,00,000 (10 × 1,00,000) होगी। यह राशि कंपनी की बैलेंस शीट में दर्ज होगी।
शेयर की Face Value निवेशकों और कंपनी दोनों के लिए कई तरह से महत्वपूर्ण होता है। शेयर बाजार में इसका उपयोग निम्नलिखित कारणों से किया जाता है:
डिविडेंड की गणना : कंपनियां अपने शेयरधारकों को जो डिविडेंड (लाभांश) देती हैं, उसकी गणना फेस वैल्यू के आधार पर की जाती है। उदाहरण: यदि किसी शेयर की फेस वैल्यू 10 रुपये है और कंपनी 20% डिविडेंड घोषित करती है, तो डिविडेंड होगा 2 रुपये प्रति शेयर।
बोनस शेयर का आधार : जब कंपनियां बोनस शेयर जारी करती हैं, तो यह फेस वैल्यू के आधार पर दिया जाता है। बोनस शेयर निवेशकों को मुफ्त में दिए जाते हैं और इससे कंपनी की कुल शेयर पूंजी बढ़ती है।
शेयर स्प्लिट (Share Split) : कई बार कंपनियां अपने शेयरों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए शेयर स्प्लिट करती हैं। शेयर स्प्लिट में Face Value को विभाजित कर दिया जाता है। उदाहरण: यदि किसी शेयर की फेस वैल्यू 10 रुपये है और 1:2 का स्प्लिट होता है, तो नई फेस वैल्यू 5 रुपये हो जाएगी।
कंपनी की पूंजी का प्रतिनिधित्व : Face Value कंपनी की कुल शेयर पूंजी को दर्शाती है। यह कंपनी की बैलेंस शीट पर दर्ज होती है और निवेशकों को कंपनी की सही वित्तीय स्थिति को समझने में मदद करती है।
बॉन्ड और डिबेंचर में उपयोग : Face Value केवल शेयरों के लिए ही नहीं, बल्कि बॉन्ड और डिबेंचर जैसे फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स में भी महत्वपूर्ण होती है। ब्याज दर की गणना फेस वैल्यू के आधार पर की जाती है।
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क्यों फेस वैल्यू और मार्केट प्राइस अलग होते हैं-
फेस वैल्यू और मार्केट प्राइस के बीच अंतर कई कारणों से होता है। जहां फेस वैल्यू शेयर का मूल मूल्य होता है जिसे कंपनी द्वारा तय किया जाता है, वहीं मार्केट प्राइस शेयर बाजार में मांग और आपूर्ति के आधार पर निर्धारित होती है। इन दोनों के अलग होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
कंपनी के प्रदर्शन का असर : कंपनी की वित्तीय स्थिति, मुनाफा, भविष्य की संभावनाएं और विकास दर सीधे तौर पर शेयर की मार्केट प्राइस को प्रभावित करते हैं। यदि कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो निवेशकों की मांग बढ़ जाती है, जिससे मार्केट प्राइस फेस वैल्यू से कहीं ज्यादा हो जाती है।
बाजार की मांग और आपूर्ति : शेयर की कीमत बाजार की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है। यदि किसी शेयर की मांग अधिक है और सप्लाई कम है, तो उसकी कीमत बढ़ जाती है। इसी तरह, मांग घटने पर कीमत गिर जाती है।
निवेशकों की धारणा : बाजार में निवेशकों की धारणा (Investor Sentiment) भी मार्केट प्राइस को प्रभावित करती है। किसी कंपनी के ग्रोथ से जुड़ी अच्छी खबरें शेयर की कीमत बढ़ा सकती हैं, जबकि नकारात्मक खबरें इसे गिरा सकती हैं।
कंपनी की भविष्य की संभावनाएं : कंपनी का भविष्य में बढ़ने की क्षमता (Growth Potential) भी मार्केट प्राइस को प्रभावित करती है। यदि निवेशकों को लगता है कि कंपनी भविष्य में अच्छा मुनाफा कमा सकती है, तो वे उस कंपनी के शेयरों को ऊंचे दाम पर खरीदने को तैयार होते हैं।
आर्थिक और बाजार की स्थिति : देश की आर्थिक स्थिति, वैश्विक बाजार के रुझान, ब्याज दरों में बदलाव और सरकारी नीतियां भी शेयर की कीमत पर प्रभाव डालती हैं।
फेस वैल्यू का स्थिर रहना : फेस वैल्यू को कंपनी तब तक नहीं बदलती जब तक शेयर स्प्लिट (Share Split) या अन्य कॉर्पोरेट एक्शन न हो। लेकिन मार्केट प्राइस शेयर बाजार की स्थितियों के अनुसार हमेशा बदलती रहती है।
फेस वैल्यू और मार्केट वैल्यू में अंतर –
जैसा कि हमने अभी तक जाना की फेस वैल्यू किसी शेयर का मूल अंकित मूल्य होता है, जबकि मार्केट वैल्यू वह कीमत होती है जिस पर शेयर बाजार में ट्रेड होता है। मार्केट वैल्यू शेयर के प्रदर्शन, बाजार की परिस्थितियों और निवेशकों की धारणा के आधार पर बदलती है। निवेशकों को इन दोनों के बीच अंतर समझकर अपनी निवेश रणनीति बनानी चाहिए।
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